Love Marriage: कोई और ऐसा करता तो बात और होती, पर आखिर कैसे मैं एक बाप होकर अपनी बेटी के साथ ऐसा कर सकता हूँ? आज जब बैठकर इस बात पर गौर करता हूँ तो इतना ज़्यादा बुरा लगता है, और जी करता है कि खुद को गोली मार दूँ! जिस बेटी को इतने नाजों से पाला था, जिसे अपनी आँखों का तारा कहता था, उसके लिए शैतान का रूप कैसे बन गया मैं? अब सोचता हूँ की आज मैं अपने किये पे चाहे जितना भी पछता लूँ, क्या वो मुझे कभी भी माफ़ कर पायेगी?
याद है उसके जनम वाला दिन जब सब अफ़सोस कर रहे थे कि बेटा नहीं हुआ और बेटी हो गयी, तो सिर्फ मैं ही तो था जो जश्न मना रहा था! मेरे लिए तो वो मेरी जान ही बन गयी, और पहली बार जब उसको अपने हाथों से छुआ था तो जैसे सिहरन सी हो गयी थी पूरे शरीर में! वो छोटी चुहिया सी बस मुझे टुक टुक देख रही थी! बस उस दिन से जैसे मैं अपनी प्यारी बिटिया के लिए ही जीने लगा था! बड़े ही नाज़ों से उसको पालते हुए कब 25 साल गुज़र गए ये पता ही नहीं चला! इतने सालों तक जिसको इतने प्यार से पाला आज उसकी ज़िंदगी के साथ ये क्या कर बैठा मैं की बन गया Love Marriage का दुश्मन?
बेटी को आज़ादी से जीने दिया!
ये बात सच है की मैंने अपनी बेटी को उसकी ज़िन्दगी बिलकुल उसके हिसाब से जीने की आज़ादी दे रखी थी! मेरे परिवार या रिश्तेदारी में किसी और ने अपनी बेटी को इतनी आज़ादी नहीं दी थी| लेकिन मेरा तो हमेशा से मानना था कि जिसको बिगड़ना होगा उसको आप कितना भी संभाल के रखो वो तो रास्ता निकाल ही लेगा! यही सोचकर मैंने अपनी बेटी को कभी किसी भी बात के लिए न रोका न टोका! मेरी पत्नी ने हर बार मुझे दुनियादारी समझायी लेकिन मैं तो हमेशा Cool Father बनके ही दिखाता रहा!
मेरे कलेजे में दबे इस दर्द को दबाते हुए मैं खुद से यही कहता हूँ की काश उस दिन मेरी पत्नी भी घर पर होती और मुझे रोक लिया होता तो शायद मुझसे इतना बड़ा अपराध नहीं हुआ होता! उस दिन मैंने अपनी प्यारी बिटिया पे हाथ उठाया! मैंने उसको बोला कि तू ये घर छोड़ के चली जा मै तेरा श्राद्ध कर देता हूँ! आज से तू हम सब के लिए मर चुकी है, और हम अब तेरा मुँह तक नहीं देखना चाहते! क्या मैंने ये सब करके ठीक किया? क्या मुझे अपनी पत्नी के आने तक का इंतज़ार नहीं करना चाहिए था?
Love Marriage अपराध की श्रेणी में नहीं आता!
मैं उस दिन अपने कमरे से निकल कर डाइनिंग टेबल पे आया और बेटी ने मुझे खाना परोसते हुए पूछा कि पापा आज आपका मूड कैसा है? मैं पहले तो समझ नहीं पाया, फिर ध्यान देते हुए बोला की, मूड अच्छा है मेरा, अगर तुम्हें कुछ चाहिए तो बता दो? बेटी कुछ बोलना तो चाह रही थी, पर मुझे उसकी आँखों में एक डर सा भी साफ़ दिखाई दे रहा था! अपना खाना लेकर टेबल पे रखते हुए बोली कि पापा मुझे आज आपसे मेरी Life के बहुत ही important Decision के बारे में बात करनी है!
अपनी Chair को मुझसे थोड़ा दूर खीचकर बैठते हुए बोली कि, पापा आपको वादा करना पड़ेगा कि आप मेरी बात सुनकर गुस्सा नहीं करेंगे! मैंने भी झट से हाँ में सर हिला दिया और उसकी तरफ देखने लगा! उसने कहा की मैं माँ से भी पहले आपको बताना चाहती थी कि मुझे मेरे ऑफिस का एक लड़का पसंद है और मैं उससे शादी करना चाहती हूँ! उसके मुंह से ये बात निकली नहीं कि मेरा पारा सातवें आसमान पे पहुँच गया! मैंने उसपे चिल्लाते हुए बोला की ऐसी बात करने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई? उसने भी मुझे इतने गुस्से में कभी नहीं देखा होगा इसलिए घबरा कर कहने लगी की पापा मैं तो आपसे अच्छे से बात करना चाहती थी, मैं आपकी मर्ज़ी के बिना कुछ नहीं करुँगी!
मेरा होश उस वक़्त कहाँ था मुझे खुद नहीं पता, और मैंने बिना कुछ सोचे समझे उसको एक थप्पड़ जड़ दिया! अपने कमरे की तरफ जाने लगी तो मैंने बोला की अगर कमरे से एक कदम भी बाहर निकला तो जान से मार डालूंगा! मेरा गुस्सा यहीं खत्म नहीं हुआ था, मैंने 2-3 दिनों बाद उस लड़के के घर पर जाकर उसके परिवार को भी बहुत भला बुरा बोला! उन लोगों को जान से मार देने की धमकी तक देकर आ गया था! पता नहीं ये सब मैंने कैसे कर दिया, लेकिन मैं इतनी बुरी सोच वाला इंसान तो बिलकुल नहीं था, जो Love Marriage से नफरत करता हो!
मेरे घर की चिड़िया ने चहकना छोड़ दिया!
इस बात को 20 दिन हो गए, मेरी बेटी ने कोई गलत कदम तो नहीं उठाया, पर मेरे घर में जैसे मातम सा छाया हुआ है! मेरी पत्नी ने मेरी बिटिया को बहुत समझाया और ये बताने की कोशिश भी करती रही कि उसके पापा गलत नहीं हैं, पर मेरी बिटिया ने मुस्कुराना छोड़ दिया था! मेरा घर जिस चिड़िया के चहकने से गुलज़ार रहता था आज वही उदास होके बैठी थी! मेरे अंदर तो जैसे उससे नज़र मिलाने तक की हिम्मत नहीं थी! हम दोनों पति पत्नी ये समझ नहीं पा रहे थे कि इसके आगे का रास्ता क्या है, और कैसे चीज़ों को वापस पटरी पे लाया जाये?
अपने अशांत मन को शांत करने के लिए मुझे कोई रास्ता नज़र नहीं आ रहा था तो पत्नी ने गुरूजी से मिलने की बात कही! सही भी यही रहता है के उलझन अगर ज़्यादा है तो बड़े बुजुर्गों से ही सलाह लेनी चाहिए! आश्रम पहुँचकर हमने गुरूजी को सारा किस्सा सुनाया और आगे का मार्ग दिखाने का अनुरोध करते हुए मेरी आँखों से आँसू बह निकले! अपनी बिटिया पे जोकि लक्ष्मी थी मेरे घर की, उसपे हाथ उठाने के बाद जैसे मैं सही से जी ही नहीं पा रहा था! आश्रम जाके ऐसा लगा की बस गुरूजी ही मेरी आखरी उम्मीद थे, बाकी सारे रास्ते बंद नज़र आ रहे थे!
जब गुरूजी ने सवालों की झड़ी लगा दी!
गुरूजी ने हम दोनों को पास बिठाया और बोले कि, जब आप छोटे थे और आपके पिता की ज़मींदारी थी, तो नीची जाति वालों को आपके बराबर बैठने की इजाज़त नहीं मिलती थी! अब आप लोग मुझे ये बताओ की,
1. क्या आपने अपनी बेटी को भी यही फ़र्क़ रखना सिखाया, की छोटी जाति वालों से घृणा करो?
-नहीं आपने उसको सभी जातियों को समान दृष्टि से देखने का संस्कार दिया
2. क्या आपने अपनी बेटी को किसी ऐसे विद्यालय में शिक्षा दिलवाई, जिसमे सिर्फ आपकी जाति के बच्चे पढ़ते थे?
-नहीं, आपने उसको सभी के साथ कदम से कदम मिलाकर चलना सिखाया, ताकि एक अच्छा समाज बन सके!
3. क्या आपने अपनी बेटी को परदे में रहना सिखाया ताकि कोई उसे देखे ही न?
-नहीं, आपने उसको खुलकर जीने की आज़ादी दी और खुली सोच के साथ जीना सिखाया!
4. क्या आपने अपनी बेटी के पढ़ने लिखने पर रोक लगाया ताकि वो ज़्यादा उड़ न सके?
-नहीं आपने उसको आसमान छूने का हौसला दिया और अपनी प्रेरणा के पंख भी दिए
5. क्या आपने बेटी को ये बात समझाई कि आपकी जाति के अलावा किसी जाति के लोग अच्छे नहीं होते?
-नहीं, आपने उसको बतलाया कि अच्छे और बुरे लोग सभी धर्मों और जातियों में हो सकते हैं!
6. क्या आपने बेटी को सिखाया कि हमारे देश में Love Marriage करनी हो तो घर से भाग के करो?
-नहीं, आपने उसको सिखाया कि हर बड़े काम के लिए बड़ों से बात करनी चाहिए और इजाज़त लेनी चाहिए!
गुरूजी लम्बी सांस लेते हुए बोले कि जब आपने ये सब सिखाया ही नहीं तो अब पछता क्यों रहे हैं? गुरूजी के बातें सुनके हमारा दिमाग घूम सा गया, और ताज़्ज़ुब करते हुए मैंने पूछा, कि गुरूजी ये सब न करके तो मैंने उसको अच्छे संस्कार ही दिए न? ये संस्कार देते समय बेज़्ज़ती महसूस हुई थी क्या? जाती धर्म के फ़र्क़ न समझने की वजह से समाज के लोग क्या कहेंगे ये चिंता हुई थी क्या? गुरूजी ने पूछा! मैंने गर्व से कहा की मुझे कोई फर्क नहीं पड़ा कि समाज क्या कहेगा, मै तो बस अपनी बेटी को एक अच्छा इंसान बनना चाहता था!
गुरूजी ने झट से पूछा कि फिर अब क्या हो गया जो फर्क पड़ने लग गया? बेटी ने अपने लिए कोई अच्छा इन्सान ढूंढ लिया और जाति या धर्म की परवाह नहीं की, तो क्यों फर्क पड़ने लगा? ये बहुत ही मज़ेदार बात हो गयी, की आपने ही सिखाया कि समाज में उंच नीच का फ़र्क़ मत करो बस अच्छे या बुरे इंसान देखो, और जब ऐसा ही किया आपकी बेटी ने, तो नाराज़ भी आप ही हो गए? ये तो वही दोहरा चरित्र है जिसकी वजह से समाज जीने लायक रह ही नहीं गया है!
आपको उस बच्ची के अच्छे संस्कार नहीं देखे कि उसने अपने जीवन का सबसे बड़ा फैसला आपकी इजाज़त से लेना चाहा! वो चाहती तो उस लड़के के साथ भाग भी सकती थी, पर उसने अपने पिता को ही ये हक़ दिया की वो देखें कि उनकी बेटी की पसंद कैसी है! क्या आपके समाज के जिन लोगों ने अपनी बेटियों को अपनी ही जाति में ब्याहा है वो सब लडकियां खुश हैं? उन पर कोई अत्याचार नहीं हो रहे? गुरूजी की बातें सुनके मैं रोता जा रहा था और पछता रहा था कि एक Love Marriage की बात के कारण मैंने अपनी प्यारी बिटिया पे हाथ उठाया था!
पुरानी सारी कुरीतियों और गलत बातों का त्याग करके हमने अपने बच्चों को खुलकर जीना सिखाया और अच्छे संस्कार दिए! और जब बच्चों ने आगे जाकर अपनी ज़िंदगी के अहम फैसलों में भी आपके संस्कारों का ही ध्यान रखा तो आपको तकलीफ होने लगी? घर आकर मैंने अपनी बिटिया से माफ़ी मांगते हुए ये वादा किया कि मैं कभी इस तरीके की गलत बातों का साथ नहीं दूंगा और समाज के और लोगों को भी Love Marriage को समझने के लिए प्रेरित करूँगा!