Thursday Myths: मैंने अपनी पत्नी को इस बात के लिए राज़ी किया कि उसको गुरूजी से ये बात पूछनी चाहिए! बहुत हिम्मत करके बिचारि ने इतने लोगों के सामने ये बात गुरूजी से पूछ ही ली! उसने पूछा कि गुरूजी लोग कहते हैं कि बृहस्पतिवार को कपडे नहीं धोने चाहिए.? अगर ऐसे करेंगे तो हमारे साथ कुछ बुरा भी हो सकता है? इस बात में कितनी सच्चाई अगर आप ये थोड़ा समझा देते तो कृपा हो जाती! ये मैं जानना चाहती हूँ!
गुरूजी मुस्कुराये और बैठ जाने का इशारा करते हुए बोले की बेटा हमे ये दो बातें अपने मन में हमेशा के लिए बिठा लेनी चाहिए! पहली ये की, ईश्वर जो है वो प्रेम का भूखा है ढोंग का नहीं! और दूसरी ये की वो आपको फल आपके कर्मों के आधार पर देता है न की, आप कितने घंटे की पूजा करते हो, उसके आधार पर! अगर ये दो बातें समझ गए तो आपको कभी भी इस तरीके की बातों का जवाब नहीं ढूंढना पड़ेगा! आप निश्चिन्त होकर जीओगे!
मैंने पहले अपने पत्नी की शकल देखी और फिर बाकी लोगों की तरफ मुड़ कर देखा और पाया कि आधे से ज़्यादा लोगों को इस बात की हवा भी नहीं लगी की गुरूजी ने कहा क्या! गुरूजी की बातें काफी गहरी थी और समझ जाने पे ज़िन्दगी बदल देने वाली बातें थी! पर भीड़ को तो सीधा सुनना था की क्या बृहस्पतिवार को कपड़े धोने चाहिएं या नहीं? मै कुछ समझ पाता इसके पहले ही मेरी पत्नी ने फिरसे पूछ डाला, की गुरूजी बात समझ नहीं आयी ज़रा खुलके समझा देते तो कृपा होती!
कर्म कैसे हैं आपके?
गुरूजी फिरसे मुस्कुराते हुए पूछने लगे की आप में से कितने लोग ऐसे हैं जो पूर्ण विश्वास के साथ कह सकते हैं की वो कर्म अच्छे कर रहे हैं! फिर क्या था पूरी जनता को जैसे सांप सूंघ गया! इतने विश्वास के साथ भला कितने लोग थे जो कह पाते के हम कर्म अच्छा कर रहे हैं इसलिए फल की चिंता बिलकुल नहीं है? गुरूजी ने फिर कहा की इसमें कोई घबराने की बात नहीं है, सच्चे दिल से सोच समझ कर जवाब दीजिये कि अच्छा कर्म कर रहे हैं या नहीं?
मैंने हाथ खड़ा किया और एक स्पष्ट आवाज़ में गरजते हुए बोला कि गुरूजी मुझे लगता है की मै अच्छे कर्म कर रहा हु! मैं अपना काम पूरी लगन से करता हूँ और अपने परिवार के लोगों का पूरा ध्यान रखता हु! मैं अपने माता पिता और बड़े बुजुर्गों का आदर करता हूँ और सभी छोटों के साथ प्यार से पेश आता हु! मै किसी का बुरा नहीं चाहता और न ही किसी बुरी सोच को अपने दिमाग में ठहरने देता हु! अब अगर आपको लगता है की इतना ठीक होना अच्छे कर्मों में आता है तो हाँ मै अच्छे कर्म कर रहा हु!
गुरूजी के आंखों में जैसे चमक सा आ गया, और प्यार से अपने पास बुलाते हुए बोले की बेटा संसार को बस ऐसे ही लोगों की ज़रूरत है! अब अगर आप ये बातें समझ गए कि सच्चा कर्म ही सच्ची पूजा है तो फिर बाकी की सारी बातें फालतु लगेंगी! गुरूजी बोले की अब मैं आपको समझाता हु की बृहस्पतिवार को कपडे नहीं धोने वाली बात (Thursday Myths) का क्या मतलब है!

कपड़े ना धोने वाले नियम का उद्देश्य!
पुराने समय से ही ये बात चली आ रही है की कपडे धोने का काम मुख्यतः घर की औरतें ही किया करती थी! पहले के ज़माने में न तो हैंड पंप थे और न ही किसी तरह के नल की सुविधाएँ थी| सबको या तो नदी पे जाके कपडे धोने होते थे या फिर किसी कुँए का पानी लेकर ये काम करना पड़ता था! वहीँ दूसरी तरफ, बृहस्पतिवार एक ऐसा दिन हुआ करता था जब समाज की ज़्यादातर महिलाएं, व्रत रखा करती थीं! अब आप लोग खुद सोच कर देखिये कि एक तरफ तो व्रत में हैं और दूसरी तरफ कपडे धोने का काम भी निपटाना है, ये बात ठीक लगती है क्या?
कुछ समझदार लोगों ने शायद इन्ही बातों को ध्यान में रखते हुए ये बात उठाई होगी कि व्रत के दिन महिलाओं को थोड़ा आराम दिया जाना चाहिए! और इस बात का निर्णय लिया गया होगा कि बृहस्पतिवार के दिन कपडे धोने का काम न ही किया जाए तो ठीक रहेगा! पहले के समय में व्रत भी लोग भूखे प्यासे रह कर किया करते थे! आज जैसी व्यवस्था थोड़े ही न थी, कि व्रत में भी 20 प्रकार के भोजन का इंतज़ाम कर लिया जाता है!
गुरूजी ने आगे कहा की वैसे तो ये पूर्णतः मेरी निजी राय है और मैं इसको किसी तरह से प्रमाणित नहीं करता हु! लेकिन समाज में व्रत करने वाली महिलाओं की सुविधा के लिए ही कपडे न धोने का नियम बनाया गया होगा! और बाद में लोगों ने इसको शगुन, अपशगुन से जोड़ दिया होगा! वरना खुद सोच कर देखो कि जिस ईश्वर का साफ़ सफाई में ही वास है उसको किसी इंसान के कपडे धोने से भला क्या ही बुरा लग सकता है? हमें ये Thursday Myths दिमाग से निकाल देना चाहिए!
फिर बृहस्पतिवार की व्रत कथा में इसका ज़िक्र क्यों है?
प्रवचन में आये सारे लोग एक दूसरे की तरफ देखने लगे और सोचने लगे की ऐसा कैसे हो सकता है? अगर ऐसा है तो फिर बृहस्पतिवार के व्रत की कथा में ऐसा क्यों लिखा है कि कुछ ऐसे काम नहीं करने चाहिए बृहस्पतिवार को? गुरूजी भी लोगों के मन में उठे इस सवाल को समझ गए थे इसलिए उन्होंने खुद ही आगे बढ़ के बताया कि आखिर व्रत वाली किताब में ऐसा क्यों लिखा है
गुरूजी कहते हैं कि धार्मिक किताबों में जो बातें लिखी गयी हैं वो इंसानों ने ही तो लिखी हैं! भले ही कई सारी किताबों को लिखने में ईश्वर के अवतारों का मार्गदर्शन रहा है पर अंततः लिखा तो इंसानों ने ही है! और हर धार्मिक किताब का उद्देश्य एक ही है, वो है ईश्वर के प्रति आस्था को बढ़ाना और समाज का कल्याण करना! फिर अगर बृहस्पतिवार व्रत की किताब किसी भी कारण से आपको कपडे धोने से मना कर रही है, तो उसका उद्देश्य भी शायद यही होगा कि महिलाओं को व्रत के दिन थोड़ा चैन और आराम मिल सके!
किताब में लिखी बातें गलत हैं ऐसा गुरूजी का कहना नहीं था पर साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि खुद की बुद्धि का इस्तेमाल करके समझिये की किताब में ऐसी बातें लिखने का उद्देश्य क्या हो सकता है? धर्म की किताबें आपको ईश्वर के करीब ले जाने का रास्ता हैं, न कि आपको डरा कर ईश्वर से दूर करने का! जब ये किताबें लिखी गयी होंगी तो समय और सुविधाएँ अलग थीं, पर आज का समय पूरी तरह से बदला हुआ है. आज कपडे धोने के लिए मशीन का इस्तेमाल होता है! आज के समय के कार्य पहले जैसे कठिन नहीं रह गए है! इसलिए आज ये Thursday Myths बन कर रह गए है बस!

मन से वर्षों पुराने इन Thursday Myths के डर को कैसे निकालें?
प्रवचन में आये लोगों को गुरूजी की बातें समझ में तो आ गयी थी, पर सालों से मन में Thursday Myths का जो डर बैठा दिया है समाज ने, उसको कैसे बाहर निकाला जाये? मेरी पत्नी ने गुरूजी से पूछना ही उचित समझा और बोली कि गुरूजी हमे बात तो समझ आ गयी है लेकिन मन से डर है कि निकलता ही नहीं है, फिर इसका क्या करें? कुछ अनहोनी हो सकती है बस यही सोच कर आज भी हम उस बातों को माने बैठे हैं! गुरूजी हम सभी के मन की शंका को समझ रहे थे इसलिए वो भी उत्तर देने के लिए तैयार ही बैठे थे!
ऊपर की तरफ इशारा करते हुए गुरूजी ने कहा कि ईश्वर बहुत दयालु है और हमेशा ही अपने भक्तों की समस्याओं का निवारण करता है! मन में जब भी किसी तरीके का डर होता है तो क्या करते हो, उसको ही याद करते हो न? उसको याद करने से आपका ईश्वर पर भरोसा बढ़ता है! और अगर आपको ईश्वर पर पूरा भरोसा हो जाये तो फिर इस बात का भी भरोसा रहेगा कि वो कभी भी आपका बुरा नहीं करेगा! ज़रा सोच कर देखिये, की क्या ईश्वर इतना खाली बैठा है की उसको इस बात पे क्रोध आ जाता है जब कोई बृहस्पतिवार को कपडे कपडे धोता है?
नहीं! ये सारी बातें बस Thursday Myths है! हमे ईश्वर के गलत स्वरुप की जानकारी दी गयी है! असल में तो ईश्वर दया और प्रेम का भण्डार है और वो चाहता है की उसकी दी हुई ज़िन्दगी को हम सभी अच्छे से जियें! अच्छे कर्मों को करते हुए संसार में प्रेम पूर्वक जीवन बिताएं और प्रेम से ही संसार से विदा भी हो जाएँ! उस ऊपर वाले को कोई फर्क नहीं पड़ता की आप बृहस्पतिवार को कपड़े धो रहे हो या नहीं, वो तो सिर्फ और सिर्फ आपके कर्म देखता है! और हकीकत में हम इंसान सारे नेक कर्म छोड़कर, बाकी सब कुछ कर रहे हैं, और ये अफ़सोस की बात है! ऐसा कह कर गुरूजी की आँखें नम हो गयीं!
हमने Thursday Myths को न मानने का फैसला किया!
घर वापस आते हुए रास्ते भर मेरी पत्नी मुझसे ये बातें करती रही की हम सभी का नजरिया ऐसा क्यों नहीं है जैसा कि गुरूजी का है? हम लोगों को भी किसी बेकार नियम या शगुन, अपशगुन की बातों के पीछे का उद्देश्य समझने की कोशिश करनी चाहिए! फिर ये देखना चाहिए की ये बातें आज के समय में लागू होतीं हैं की नहीं? तब फैसला लेना चाहिए की हम इन बातों को आज के समय में अमल करें या फिर भूल जाएँ! मै खुश था की मेरी पत्नी गुरूजी की बातों को अच्छे से समझ चुकी थी!
सबसे अच्छी बात तो ये थी की उस रात मेरी पत्नी फ़ोन पे यही बातें अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को भी बतला रही थी! वो बार बार यही दोहरा रही थी की हमे Thursday Myths को एकदम मन से निकाल फेकना चाहिए! ये सब बस हमारा भ्रम है! हम उस रात को बड़े सुकून से सोये! अगली सुबह मेरी आँख मेरी पत्नी के चिल्लाने की आवाज़ से खुली! कमरे से बाहर आकर देखा तो मेरी पत्नी इस बात पे कामवाली से लड़ रही थी कि तुम्हे हमेशा से मना कर रखा है फिर आज बृहस्पतिवार को पोछा किससे पूछ कर लगाया? तुम्हारा दिमाग होश में रहता है या नहीं?